Thursday 30 August 2012

मधुर - मसूरी


हिमगिरी के उतुंग शिखर पर, रहती मधुर मसूरी

उसके दर पर आकर होती सबकी आशा पूरी |

 

सरिसर्प-सी लंबी सड़कें चौड़ी टेढ़ी-मेढ़ी सी

ऊपर चढ़ती जाती लगती स्वर्ग में लगी सीढ़ी-सी

एक के ऊपर एक चढ़ी है ऊँची पर्वत सी चोटी

महा बलिष्ठ कठिन चट्टानें पसरी हैं मोटी-मोटी

            उसके ऊपर फैली कोमल हरी घास अंगूरी,

            इसके दर पर आकर होती सबकी आशा पूरी |

 

देवदार के पेड़ खड़े हैं आसमान को छूते से

ध्यान मग्न हैं योगी जैसे अनासक्त अछूते से

हरी लताएं लिपटी हैं जैसे उर्वशी अप्सरा हो

योगी से ज्यों योग झरा हो और प्रेमी का प्रेम खरा हो |

            अलग-अलग दिखते हैं लेकिन बंधे प्रेम की डोरी         

            इसके दर पर आकर होती सबकी आशा पूरी |

 

सब सफेद हो जाता है जब हिमगिरी पर होता हिमपात

हरियाली दुल्हन ने पहना चांदी जैसा शुभ्र लिबास

पेडों की टहनी पर रूई के फोहे यूं लटक रहे

आसमान के तारे बनकर भूत देह को भटक रहे |

            कैसे रखूं पांव बर्फ पर, है निर्मल सुकुमारी

            इसके दर पर आकर होती सबकी आशा पूरी |

           

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