गिर रहा जो बादलों से बूंद बन, झर रहा जो
कमल पर बन ओस कण
ये जमाना जो कहे कुछ भी कहे, मैं कहता
हूँ प्यार केवल प्यार है |
कली
चटक कर फूल जब बन जाती है
रंग
बिरंगी तितलियाँ मंडराती हैं
लता
वृक्ष पर आप ही चढ़ जाती है
और
गिलहरी टहनी पर बल खाती है
पत्ता-पत्ता बाग का कुछ
भी कहे
मैं कहता हूँ प्यार केवल प्यार है |
उमड़-घुमड़
कर ये सावन जब आता है
मस्त
मयूर तब नर्तक क्यूँ बन जाता है
कोकिल
भी तब सात सुरों में गाती है
चकवे
को चकवी की याद सताती है
सारे पंछी जो कहें कुछ भी कहें
मैं कहता हूँ प्यार केवल प्यार है |
ये
गगन क्यूँ दूर धरा से मिलता है
और
चंदा क्यूँ चांदनी को छलता है
क्यूँ
सरिता सागर से जाकर मिलती है
क्यूँ
पवन पिया के लिए मचलती है
ये गगन और ये पवन कुछ भी कहें
मैं कहता हूँ प्यार केवल प्यार है |
पल
पल सृष्टि कैसे विकसित हो रही
प्रलय
सृजन से क्यूँ पराजित हो रही
जग
मिट-मिट कर सुन्दर और बनता जाता है
राज़
क्या है कौन इसे कह पाता है
कह सके या कोई इसको ना कहे
मैं कहता हूँ प्यार केवल प्यार है |
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