तुम सूरज ही बनो
यह
कोई जरूरी नहीं
दीपक की बाती बन जाओ
यही
क्या कम है ?
तुम करो प्रकाशित संसार को
कोई
आवश्यक नहीं
एक झोंपड़ी का अँधेरा मिटा दो
यही
क्या कम है ?
दरिया के किनारे भी टूट जाएं
इतना
बरसना भी किस काम का
एक चातक की प्यास बुझा दो
यही
क्या कम है ?
सारा चमन तुम्हीं खिलाओ
कोई
जरूरी नहीं
प्यार की एक पौध लगा दो
यही
क्या कम है ?
पर्वत की तरह ऊंचे ना उठ सको
तो
कोई बात नहीं
खेत की तरह पसर जाओ
यही
क्या कम है ?
सारी दुनिया का शिखर सम्मेलन करो
यह
कोई महानता नहीं
एक टूटा हृदय जोड़ दो
यही
क्या कम है ?
मौत को फांसी पर लटकाओ
यह
कोई प्रगति नहीं
एक सुप्त जीवन जगा दो
यही
क्या कम है ?
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