बेटा जब पैदा हुआ, लडडू बांटे माय
बेटी घर में आई तो, मुंह से निकली हाय |
बेटा
पीले दूध तू, और मलाई डाल
रूखी-सूखी
खाय कै, बेटी होत निहाल |
बेटा क्रिकेट खेल तू, देर रात घर आय
घर की देहली के बाहर, बेटी तू मत जाय |
बेटा
कॉलेज में पढ़े, और अंग्रेजी भांज
झाड़ू-पोंचा खत्म कर, बेटी बर्तन मांज |
बेटा गया विदेश में, माँ तरस रही दिन-रात
बेटी बैठी पास में, माँ को नज़र ना आय |
हुई
बिमारी सांस की, माँ ने पकड़ी खाट
बेटी
सेवा कर रही, बेटे की देखै बाट |
एक दिन माँ तो मर गई, बेटी धाड़ मरकर रोय
लोग बुलावै पूत को, क्यूंकि पुत्र बिन ना
मुक्ति होय |
जाने
किसने बना दिये, ऐसे घृणित रिवाज
और
कहाँ तक जा गिरेगा, अपना पतित सामाज |
बेटा-बेटी एक है, एक पेट की आग
कभी बेटी को भी तरसोगे, जाग सके तो जाग |
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