लेखक हरि भारद्वाज – पढ़ें और आनंद लें
Tuesday 2 October 2012
क्रांति
जब कोई निर्विकार आत्मा
निर्धूम अग्नि समान
सत्य की ज्वाला लिये
उतर पड़ती है
–
कर्मपथ पर
निर्द्वन्द्व, निर्भय, निष्काम
तब....
उसके अभिवादन में
सागर गरजता है
आकाश झुक जाता है
सारी धरती
उसके पद चिन्ह खोजती है
और ....लोग कहते हैं
–
क्रांति हो जाती है ...
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